बेटी पर बेहतरीन शायरी

उसको थक हार के भी नींद कहाँ आती है
एक मज़दूर की बेटी जो सयानी हो जाए

अब्दुल रहमान मंसूर
कभी माँ बाप की झोली में हो जब नूर की बारिश!
ख़ुदा के फ़ज़्ल से घर बेटियाँ जन्नत से आती हैं

साग़र त्रिपाठी
किसी तरह से भी कमज़ोर क्यों बनाऊँ उसे,
मैं अपनी बेटी को बेटा नहीं पुकारुंगा

खालीद नदीम सानी
चाँद जैसी भी हो बेटी किसी मुफ़्लिसी की तो
ऊँचे घर वालों से रिश्ता नहीं माँगा जाता

अब्बास दाना
जब तक वो साथ थीं तो मैं तन्हा नहीं रहा
मत पूछो कितना याद अब आती हैं बेटियाँ
सलीम तन्हा