Hijab par Shayari हिजाब पर शायरी

हमें है शौक़ कि बे-पर्दा तुम को देखेंगे
तुम्हें है शर्म तो आँखों पे हाथ धर लेना
दाग़ देहलवी
ख़ूब पर्दा है कि चिलमन से लगे बैठे हैं
साफ़ छुपते भी नहीं सामने आते भी नहीं
दाग़ देहलवी
स्टेज पर पड़ा था जो पर्दा वो उठ चुका
जो अक़्ल पर पड़ा है वो पर्दा उठाइए
दिलावर फ़िगार
बस अब दुनिया से पर्दा चाहती हूँ
में सब से दूर रहना चाहती हूँ
दीपाली अग्रवाल
देख कर हम को न पर्दे में तू छुप जाया कर
हम तो अपने हैं मियाँ ग़ैर से शरमाया कर
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी